भारतीय संस्कारों का व्यक्तित्व - Taponishtha

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Sunday, September 13, 2020

भारतीय संस्कारों का व्यक्तित्व

संस्कार भारतीय जीवन की एक बहुत ही महत्वपूर्ण सम्पदा है| इसका महत्व जीवन की  किसी भी अन्य भौतिक सम्पदा से ज्यादा है | भारतीय संस्कृति में व्यक्ति के जीवन में संस्कारों की उपस्तिथि और अनुपस्तिथि  ही व्यक्ति विशेष के अच्छे और बुरे होने की पहचान बनती है | व्यक्ति के पास संस्कारों की जितनी ज्यादा अधिकता होगी, उतना ही उसका जीवन पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर सफल होगा ऐसी विचार धारा  भारतीय संस्कृती में देखी जाती है | ऐसा देखा जाता है की व्यक्ति को हर स्तर पर अपने संस्कारों के माध्यम से ही समाज में अपना स्थान बनाना पड़ता है | यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार से संस्कारो के सम्बन्ध में अभावग्रस्त रहता है, तो यह निश्चित है की उसे समाज का एक बहुत ही विकृत रूप समझा जाता है | और इस विकृत रूप की किसी भी  मनुष्य में उपस्तिथि उसे न सिर्फ  उसके  समाज से, बल्कि उसके स्वयं के परिवार से अलग कर देती है| 


मनुष्य शरीर जिस तरह पञ्च तत्वों से मिलकर बनता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य का व्यक्तित्व भी इन्हीं संस्कारों के इन छोटे -बड़े तत्वों से मिलकर बनता है| भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृति और सभ्यता है| जहाँ मनुष्य अपने जन्म के कुछ समय बाद से ही संस्कारों को अपने जीवन में लाने के कार्य में व्यस्त हो जाता है | क्यूंकि यही संस्कार ही उसके माध्यम से उसके परिवार की पहचान बनते हैं और उस  व्यक्ति विशेष के माता और पिता को समाज में एक सम्मानीय स्थान प्रदान करते हैं | 


यहाँ संस्कारों की अघिकतम अपेक्षा बच्चों से की जाती हैं | और बच्चों को शिक्षास्थल , समाज और परिवार के माध्यम से सिर्फ यही विचार दिया जाता है कि उनके जीवन में उनके माता -पिता या उनके अभिभावकों का एक उचित सम्मानीय स्थान होना चाहिए | उनके माता- पिता उनके भगवान् हैं, इस विचारधारा को उनके व्यक्तित्व में समाहित होना बहुत जरूरी है | क्यूंकि वे ही एक मात्र समाज, राष्ट्र या विश्व स्तर पर उनके हर प्रकार से हितेषी होते हैं | उनका साथ और उनका सहयोग अगर जीवन में हर कार्य के लिए आवश्यक समझा जाए तो निश्चित ही उन्हें हर प्रकार की सफलता प्राप्त हो सकती है और वे कभी भी किसी भी स्तर पर असफल नहीं हो सकते हैं | 





यही भारतीय संस्कृति का व्यक्तित्व होता है, जहाँ बच्चे सफलता की किसी भी उच्च स्तर पर को नहीं पहुंच जाए लेकिन उनकी वास्तविक सफलता का आकलन सिर्फ इस बात से लगाया जाता है की वे अपने परिवार और अपने माता-पिता को अपने जीवन में क्या महत्व देते हैं | यानि अगर कोई एक संतान आर्थिक स्तर पर एक उच्च कोटि की सफलता प्राप्त कर चुका है, लेकिन वह अपने माता-पिता, परिवार और समाज का सम्मान करना भूल गया है और आर्थिक सम्पन्नता को ही अपनी विचारशैली बना चुका है तो वो निश्चित ही एक असफल इंसान होगा| 


और वहीं दूसरी और यदि कोई संतान आर्थिक स्तर पर उतनी संपन्न नहीं है, जितनी पहली संतान है, लेकिन वह अपने माता-पिता को अपने जीवन में भगवान् स्वरुप समझती है तो  निश्चित रूप से ये संस्कार ही होंगे जो उसे पहली संतान से ज्यादा कीमती इंसान बनाएँगे, चाहे फिर माता-पिता हों, परिवार हो या समाज उसे अपने साथ एक उचित दर्जा और साथ देने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे | 

यही वास्तिवक भारतीय संस्कृति हैं,जहाँ बच्चो के संस्कार के कारण ही यह संस्कृति अपनी पहचान बनाने में सदियों से सफल रही हैं और आगे भी इसी अपेक्षा के साथ आगे बढ़ रही है | 

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