व्यक्तित्व के सम्बन्ध में सावधानी बरतें!!! - Taponishtha

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Sunday, October 11, 2020

व्यक्तित्व के सम्बन्ध में सावधानी बरतें!!!


"व्यक्तित्व" का अर्थ है, किसी भी व्यक्ति में व्यव्हार से सम्बंधित तत्वों की उचित और अनुचित उपस्तिथि , व्यक्ति या मनुष्य अपने जीवन में किस प्रकार के आचार और विचार रखता है, उसकी भावनाएं और विचार उसके मौखिक शब्दों से किस प्रकार का ताल-मेल रखते हैं,यह देखना ही व्यक्ति का असली काम होता है, और यदि इंसान की  भावनायें, विचार और उसके शब्द एक अलग ही द्वन्द में लगे हों और इंसान इसी जोड़-तोड़ में लगा हो की कैसे इस टूटी-फूटी मानसिक कमियों के साथ जिंदगी को जिया जाये और सब कुछ ठीक-ठाक तरीके से चलाया जाये, तो इंसान की जिंदगी बाहर से तो करीब-करीब ठीक लगती है लेकिन वो अंतर से बिलकुल मृत बन जाता है, और दिनबदिन गर्त में बढ़ता चला जाता है और किसी को इसका पता भी नहीं होता हैं,  इसलिए व्यक्तित्व के सम्बन्ध में हमेशा समय समय पर अपने आपको देखने की जरूरत है और सोचने की जरूरत है, की हम कैसे अपने  "व्यक्तित्व के सम्बन्ध में सावधानी बरतें"!!! क्यूंकि,



क्यों सावधानी बरतनी जरूरी है?

व्यक्तित्व की नाजुक इस्तिथि ही इंसान को समय -समय पर गिराने का कार्य करती है, उसकी भावनाओ और विचारों का आपसी द्वन्द ही उसे हर जगह ख़तम कर देता है और इंसान बस यही सोचता रहता है, की मेरा नसीब ख़राब है, मेरा वक़्त ख़राब है, हां ये सच हो सकता है की इंसान का नसीब सच में इस स्तिथि में हो  और वक्त ने कुछ समय के लिए अपना मुँह मोड़ लिया हो, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है, इंसान ने लम्बे समय से जो अपने दिमाग के छोटे-छोटे कोनो में और संस्कार गर्भ में जो भावनाये और विचार चाहे - अनचाहे बीज रूप में डाले होंगे और उन विचारों और भावनाओ को  थोड़े-बहुत अभ्यास के साथ याद रखते हुए  जीवित रखा हो, और उन्के लाभ-हानि को जाने बिना और अपने-पराये का भेद जाने बिना अपने अंदर रहने दिया हो, और उनकी आवर्ती के सन्दर्भ में बिलकुल सचेत ना रहा हो, कोई सावधानी न रखी हो तो ही ये विचार एक दिन इंसान की असली पहचान उसकी असली सोच को ख़तम कर देते हैं और पूरी तरह अपना घर बना लेते हैं , 



यहीं से जब इंसान धीरे -धीरे आयु की वृद्धि की और बढ़ता है, और उन्हें भी अपने साथ पालता पोस्ता है, तो वो एक दिन उसका व्यक्तित्व बन जाते हैं , और इंसान को कुछ का कुछ बना देते हैं, और  इंसान ऐसी भूल-भुलइआ में फसता है, की वो खुदको  इस समझ से बिलकुल अलग पाता है, की वो आखिर में है क्या , वो सोचना कुछ चाह रहा है और उसके मन एवं मष्तिष्क में अलग ही विचार और भावनाएं अपना विचरण कर रहे हैं, इसलिए उसकी जुबान कुछ कहती है और उसकी और देखने वाले इंसान को उसकी भावनाओ और विचारों में कुछ अलग ही राग सुनाई दे रहा होता है , इसलिए इंसान को हमेशा अपने और अपने व्यक्तिव के सम्बन्ध में सचेत रहना चाहिए, और सावधानी से जीवन जीना चाहिए 



ये बिलकुल ऐसा ही है जैसे माँ- बाप औलाद को जन्म देते हैं, अपना मानकर लेकिन जैसे -जैसे वो बड़े होते हैं, और किसी कारण से उनपे ध्यान नहीं  दे पाते तो आगे चलके वो न तो उनकी बुराई को ख़तम कर पाते हैं, ना ही उन्हें अपने से अलग कर पाते हैं,  इसलिए इंसान को चाहिए की अपने आप के खरे-खोटे होने की परख करते रहें और हमेशा  व्यक्तित्व के सम्बन्ध में सावधानी बरतें!!!

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व्यक्तित्व के सम्बन्ध में सावधानी बरतें!!!

"व्यक्तित्व" का अर्थ है, किसी भी व्यक्ति में व्यव्हार से सम्बंधित तत्वों की उचित और अनुचित उपस्तिथि , व्यक्ति या मनुष्य अपने जीवन ...