जलवायु परिवर्तन- मात्र एक चर्चा का विषय बन कर रह गया है। - Taponishtha

Latest

Saturday, November 9, 2019

जलवायु परिवर्तन- मात्र एक चर्चा का विषय बन कर रह गया है।


"जिस देश की मिट्टी में एक धीमी खुशुब बहती थी,
उस देश की जल वायु में, अब धुँए की हवाए बहने लगी।
क्या उम्मीद करूँ इस दुनिया से जिसकी करनी के ही कारण,
मैं खुद ही खुद को खोने लगी।"

जलवायु परिवर्तन एक ऐसा परिवर्तन है, जिसके संबंध में अगर देखा जाए, तो कोई भी ऐसा इंसान नहीं हैं। जिसे इस संबंध में किसी आधारभूत ज्ञान का अभाव हो। प्रत्येक मनुष्य जो इस भूमंडल में उपस्थित है और अपने आस पास के वातावरण से सामान्य तौर पर भी परिचित है। सबसे पहले इस संबंध में जानकारी अवश्य रखता है।लेकिन विडंबना यह है। कि बीते कुछ समय की परिस्थितियों
पर अगर समीक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो यह समझना और विश्वास के रूप में ग्रहण करना अति कष्टकारी प्रतीत होता है। कि यह कार्य स्वयं एक मनुष्य द्वारा किया जा रहा है। ओर वह स्वयं ही अपने इन प्राकृतिक उपहारों को स्वयं के ही हाथों दूषित और प्रदूषित करने में पूरी तरह से सहयोग दे रहा है और साथ ही मूकदर्शक बना इसे चर्चाओं का विषय बनाने में लगा हुआ है।


आज जिस प्रकार मनुष्य स्वयं को एक सुसम्पन्न और विकसित मानसिकता वाले प्राणी के रूप में पूरे विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है और अपना पूरा समय अधिक से अधिक सफल बनने में लगा रहा है। उसे देख कर यह कहना बहुत गर्वपूर्ण है। कि अपने विकास के रास्ते में अतीत में रहने वाली सारी कठिनाइयों को वह पूरी तरह समाप्त कर चुका है। और एक नए विश्व के निर्माण में सहयोग देने लगा है।

लेकिन इसके साथ ही एक ऐसी भी स्तिथि उपन्न करने में अपना पूरा योगदान भी दे चुका है। जिसका चेहरा बहुत ही भयावह है। और इतना ही नही जिस जडता से उसने इस भयानक दृश्य के बीज को बोया है। उतनी ही जडता ओर नियमितता के साथ इसे फलित करने में भी लगा हुआ है। इस भयानक दृश्य की नामावली को "जलवायु परिवर्तन" से जाना और समझा जा सकता है।


जलवायु परिवर्तन की इस घड़ी में अपने ही देश के सबसे सुसंपन्न राज्य दिल्ली को संज्ञान में लेना यहाँ प्रासंगिक हो सकता है। जो प्रत्येक वर्ष अक्टूबर और नवंबर में एक अलग ही प्रकार की गंभीर और चिंताजनक स्तिथि से सामान्यजन को डराना शुरु कर देती है।

इन दो महीनों में जो भारतीय संस्कृति और प्रकृति की जो इसमे भूमिका को दोष दिया जाता है। वह यह है कि दीपावली और किसानों के फसलो के अवशेषों को जलाने से यह श्तिथि उत्पन्न होती है। लेकिन क्या इन तथ्यों को एक उचित मानदंड के रूप में सही साबित किया जा सकता है कि सिर्फ इन दो मुख्य कारणों से ही हम इन परिस्थितियों से रूबरू हो रहे है।

इस संबंध में गहराई से विचार करने पर ही इसके सही कारणों को समझा जा सकता है। जिसका सीधा सीधा संबंध हमारी स्वयं की गलतियों और उन्हें नकारने का नतीजा है इसलिए समाधान की आवश्यकता को समझते हुए इसके संबंध में कार्य किया जाना जरूरी समझा जाना चाहिये और सुझावों को धीरे धीरे जीवन में बदलावों की आशा के साथ अपनाना चाहिए

सुझावों को मानने की आवश्यकता:

इसके सही कारणों को जानते हुए सबसे पहले मनुष्य को इस समस्या को दैनिक वृद्धि के आधार पर परिचित होना पड़ेगा और यह देखना चाहिए कि इस प्रदूषण भरी नगरी में जो दृश्यमान हो रहा हैं वह अचानक दो चार महीनों का परिणाम है। या इसकी भूमिका स्वयं मेरे द्वारा अपनायी जा रही दिनचर्या का परिणाम है। इसके साथ ही अपनी इस समस्या को उतनी ही जडता के साथ मिटाने की आवश्यकता को समझे और मात्र चर्चाओं का हिस्सा बनने के स्थान पर अवश्य निर्देशों को व्यवहार में लाना शुरू करे।








No comments:

व्यक्तित्व के सम्बन्ध में सावधानी बरतें!!!

"व्यक्तित्व" का अर्थ है, किसी भी व्यक्ति में व्यव्हार से सम्बंधित तत्वों की उचित और अनुचित उपस्तिथि , व्यक्ति या मनुष्य अपने जीवन ...