धर्मनिरपेक्षता : राष्ट्र निर्माण की शक्ति - Taponishtha

Latest

Saturday, November 16, 2019

धर्मनिरपेक्षता : राष्ट्र निर्माण की शक्ति


राष्ट्र निर्माण एवं उसका विकास किसी भी एक सुसम्पन्न राष्ट्र की प्राथमिकता होनी चाहिए है। जिसके लिए संवैधानिक रूप से उत्तरदायी व्यक्तियों के साथ साथ उसके नागरिकों को भी इसमें भागीदार होना चाहिए।

चूँकि राष्ट्र के निर्माण का लाभ सिर्फ नागरिकों को ही प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में प्राप्त होता है। तो यह संबंधित नागरिकों का भी कर्तव्य होता है कि वह उस संबंध में अपनी भूमिका किसी ना किसी रूप में राष्ट्र को समर्पित करें। और ऐसा तभी सम्भव है, जब हम अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में कुछ मानसिक परिवर्तन ला सकने में समर्थ हो सकें। और साथ ही इस कार्य में दुसरो को भी भागीदारी के साथ साथ सहयोग भी प्रदान करें।

"चूँकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है" और इसके इतिहास के पन्नों में हर धर्म और जाति के मनुष्यों द्वारा इसे समृद्ध और सुसज्जित किया गया है। इस क्षेत्र में कोई भी कार्य ऐसा नहीं है। जहाँ यह निर्धारित किया जा सके कि यह विशेष कार्य एक धर्म और जाति द्वारा ही किया गया है। और अन्य धर्म का उस संबंध में कोई योगदान नहीं निर्धारित किया जा सकता है।


और यही विशेष उपलब्धि ही देश और राष्ट्र निर्माण के लिये सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होती आयी है। और भविष्य में भी इसके परिणाम साशय के रूप में प्राप्त होने की पूरी आशा की जानी चाहिए। लेकिन आवश्यकता की विषयवस्तु में जिस एक शब्द को सदैव प्रभावी रखने की जरूरत है वह है- धर्मनिरपेक्षता


अपेक्षित परिणामों की प्राप्ति की संभावना:

अगर वर्तमान उदाहरणों को संदर्भित किया जाए तो इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज भारत एक बहुत ही विकासोन्मुख राष्ट्र है। और इसकी सफलता इस देश की नागरिक शक्ति की सहभागिता का परिणाम ही कही जा सकती है। जो अनेकों विविधताओं को अपने अंदर समाहित करते हुए अपनी एक मात्र शक्ति के कारण अपने आप को हर क्षेत्र में एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

हाल में आये देश के लगभग 500 वर्ष पुराने विवाद(अयोध्या बाबरी मस्जिद वाद) ने आज इस राष्ट्र की वास्तविक शक्ति को ना सिर्फ उसके स्वयं के नागरिकों से परिचित कराया है बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी "धर्मनिरपेक्षता- राष्ट्र निर्माण की शक्ति" के सदवाक्य को भी एक नए मानकों के साथ प्रस्तुत किया है।

कारण है देश के नागरिकों में राष्ट्र निर्माण और उसके विकास की राह पर निरंतर कार्य करने की इच्छाशक्ति का प्रबल होना। जिन्होंने संविधान की धर्मनिरपेक्षता की विशेषता को स्वयं की विशेषता बनाया, और अपने इतने पुराने और गंभीर विवाद को संविधान के "अनुच्छेद 142" में उपबंधित "पूर्ण न्याय" की संकल्पना को मूर्त रूप प्रदान में सहायक रूप प्रदान किया।

और अपने अपेक्षित परिणामों को प्राप्त किया।

अगर राष्ट्र के सभी नागरिक अपनी भूमिका इसी प्रकार हर क्षेत्र और उसकी समस्या के समाधान में निभाते रहे तो धर्म के नाम पर देश की प्रगति में जो बाधाएं अब तक देखी जाती रही हैं उनका समाप्त होना निश्चित है। और इसी धर्म को राष्ट्र निर्माण की शक्ति बनाया जा सकना सम्भव है।

No comments:

व्यक्तित्व के सम्बन्ध में सावधानी बरतें!!!

"व्यक्तित्व" का अर्थ है, किसी भी व्यक्ति में व्यव्हार से सम्बंधित तत्वों की उचित और अनुचित उपस्तिथि , व्यक्ति या मनुष्य अपने जीवन ...