पद और प्रतिष्ठा - Taponishtha

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Saturday, September 28, 2019

पद और प्रतिष्ठा

प्रतिष्ठा और पद दो ऐसे शब्द हैं। जिनकी महत्ता इस आधार पर तय की जाती है। कि इनसे जुड़ा व्यक्ति किस स्तर की विचारधारा अपने मस्तिष्क में तैयार करता है।

चूँकि इस संसार में जो भी वस्तु विद्यमान है। वह किसी ना किसी प्रकार से मनुष्य से जुड़ी हुई है और यही कारण है कि जब कभी इसके महत्व की बात उत्पन्न होती है। उसका निर्धारण मनुष्य द्वारा ही संभव हो पाता है।

आज के आधुनिक समय में मनुष्य अपने जीवन में जिस वस्तु को सर्वाधिक महत्व देता है। वह है लोक प्रतिष्ठा और धन प्रतिष्ठा। जहाँ व्यक्ति अपने वास्तविक कार्यो को विश्मृत करके पूर्णतया अपने निजी स्वार्थों को महत्व देता है।

वह जब भी किसी कार्य को प्रारंभ करता है तो यही कहता है और यही व्याख्यान देता है कि वह यह कार्य किसी निजी स्वार्थवश नहीं कर रहा है। उसका कार्य देश और समाज की भलाई के लिए है। और इस कार्य में वह अपने निजी नीतिककता को स्थान नहीं देगा।

बल्कि इसमें प्राकर्तिक मूल्यों को महत्व प्रदान करेगा । बल्कि ऐसा किया भी जाता है। लेकिन इन मूल्यों की अवधि दीर्घकालिक नहीं होती है। कुछ समय के बाद इनके अवरोहण की तिथि समीप आ जाती है। और जो संकल्प किया होता है वह पूरी तरह से खत्म हो जाता है और कार्यों और विचारों की प्रकृति ही बदल जाती है और उसकी जगह निजता द्वारा विस्थापित जो जाती है।

निजी नैतिकता के विषय में जो तत्थ प्रचलित हैं।  वह एक काल के पश्चात पूर्णतया सत्य सिद्ध हो जाते हैं। क्योंकि मनुष्य एक ऐसा प्राणि है जो कि भौतिक आवश्यकता के प्रति हमेशा आकर्षक बना रहता है और जैसे ही उसकी इस इक्छा की पूर्ति होती है। वैसे ही वह अपनी विचारधारा को बदल कर किसी भी वस्तु की पद और प्रतिष्ठा के स्तर को नया मानक प्रदान कर देता है।

यही कारण है कि आज के समाज सेवा के क्षेत्र व्यक्ति प्रारंभ में तो आदर्शो को महत्व देता है और लोक कल्याण के लिए कार्य करता है । लेकिन जैसे ही उसे अपने धन और लोकप्रतिष्ठा का एक सुअवसर प्राप्त होता है वैसे ही वह अपने पद और प्रतिष्ठा को एक अलग ही दृष्टि से देखना प्रारम्भ कर देता है।

और यही वह समय होता है जहाँ किसी पद और प्रतिष्ठा के मायने इन्सानी प्रवर्ति के आधार बन जाते हैं। और यही से समाज और किसी राष्ट की उन्नति और अवनति प्रारंभ होती है।

अतः आवश्यकता इस बात की है कि व्यक्ति नैतिक मूल्यों में समाज को महत्व दे ना निजता को । यही वास्तविक पद और प्रतिष्ठा हैं। जिनके परिवर्तन की संभावना बहुत ही नगण्य होती हैं।

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