नारी सुरक्षा किसकी जिम्मेदारी है?" नारी सुरक्षा " जिसकी बात आज इस आधुनिक और सभ्य समाज के हर व्यक्ति द्वारा की जाती है और समय - समय पर इसमें आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए क़ानूनी स्तर पर अनेक प्रकार की माँगें भी की जाती है | ताकि देश और समाज में महिलाओं को एक बेहतर स्थान दिया जा सके | लेकिन यह समस्या का समाधान सिर्फ बातों के स्तर पर ही रह जाता है | क्यूंकि नारी सुरक्षा की जिम्मेदारी इस समाज द्वारा सिर्फ कानून के ऊपर ही छोड़ दी गयी है और यह मान लिया गया है की यह जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ कानून की है| और इस सम्बन्ध में कुछ नहीं किया जा सकता है
हां यह वास्तविकता है की समाज में रहने वाले हर व्यक्ति की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का उत्तरदायित्व देश में एक विशेष निर्णय के तहत लाये गए शासन अधिकारीयों और क़ानूनी अधिकारीयों का है और उन्हें इस सम्बन्ध में एक विशेष कार्य सौंपा गया है| और कुछ सीमा तक इस कार्य को क़ानूनी स्तर पर किया भी जाता है| आज नारी सुरक्षा को चुनौती देने वाले हर क्षेत्र में बहुत ही कठोर कानून का प्रावधान किया गया है | जहाँ "भारतीय दंड संहिता" अपनी एक विशेष भूमिका अदा करता है | यह दंड संहिता किसी भी अपराध के साशय किये जाने पर कठोर दंड सुनिश्चित करता है | लकिन क्या यह अपने आप में पर्याप्त है ? क्या इसके प्रयासों को समस्या के समाधान के सम्बन्ध में पूर्णतया पर प्राधिकृत कर दिया गया है या फिर इसके आलावा भी कुछ किये जाने की आवश्यकता है ?
समाज में नारी सुरक्षा की वास्तविक जिम्मेदारी कानून के साथ किसी और की भी हो सकती है| क्या इस जटिल समस्या के समाधान में कोई और भी अपनी जिम्मेदारी समझ सकता है| और इसमें अपना सकारात्मक योगदान दे सकता है इस सम्बन्ध में विचार करने के आवस्यकता आज के गंभीर समय तो अवश्य समझी जानी चाहिए
क्या इस समस्या के सम्बन्ध में कुछ इस प्रकार भी सोचा जा सकता है की कही न कही इस समाज का, समाज में रहने वाले परिवारों का और इन परिवारों में रहने वाले सदस्योँ का भी कोई कर्त्तव्य बनता है की वह अपने इस समाज की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी को एक बहुत ही महत्वपूर्ण सुरक्षा कैसे दे सकें| वह यह सुनिश्चित कर सके की किसी कानून या क़ानूनी अधिकारी की अपेक्षा नारी या महिला के आसपास जो हमेशा रहता है वह है उसका घर-परिवार , उसका समाज जिसके स्वीकार्य और अस्वीकार्य रूप में उसके अस्तित्व की मुख्य कारण वह स्वयं होती है तो क्या यह समाज इसके लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण लकिन बहुत ही सहजता से किया जा सकने वाला कार्य नहीं कर सकता क्या?
सुरक्षा या जीवन रक्षा का अधिकार सबका होता है , यह अधिकार सबको समान रूप से मिलना चाहिए और सम्भवत: एक सभ्य राष्ट्र के द्वारा इसे प्रतिपल इसे दिया भी जाना चाहिए | सिर्फ कानून का सहारा लेना या कानून के आगे एक प्रश्नवाचक चिन्ह लगा देना सुरक्षा की जिम्मेदारी को पूरा नहीं करता है | कानून का उपयोग बाद में किया जाएगा किसी भी कानून से पहले किसी का भी अच्छा या बुरा करने की सामर्थ्य उस विशेष तत्व की होती है जो उस मनुष्य के मस्तिक में होता है और इसका नकारात्मक व्यावहारिक रूप ही नारी सुरक्षा को बाधित करता है
कानून किसी को भी भौतिक स्तर पर सुरक्षा प्रदान कर सकता है लेकिन मानसिक स्तर पर ऐसा किया जाना बिलकुल संभव नहीं है| इस समाज और समाज में रहने वाले व्यक्तियों की मानसिक स्तिथि ही किसी भी नारी की सुरक्षा की जिम्मेदारी सुनिश्चित कर सकती है| इसलिए आवश्यकता है तो इस बात की समाज के द्वारा इसके मानसिक क्ष्रेत्र में नारी और उसके अधिकारों के सम्बन्ध में एक सकारात्मक सोच का स्थिरतापूर्ण मजबूत ताना-बाना तैयार किया जाना चाहिए |
और वास्त्विक रूप में आज के विकट समय में इस ला इलाज मान ली गयी मानसिक बीमार का हल इन्ही विचारों के फेर-बदल के माध्यम से ही किया जाना चाहिए क्यूंकि इसका इलाज पूरी तरह कानून के माध्यम से कभी भी नहीं किया जा सकता है |
इस जिम्मेदारी को एक बार इस समाज के द्वारा बोझ और व्यर्थ समझे बिना उठाया जाना जरूरी है और इन शब्दों का बार- बार दोहराया जाना चाहिए की नारी सुरक्षा की जिम्मेदारी जितनी कानून की है उतनी मेरी भी है?
नारी सुरक्षा किसकी जिम्मेदारी है?
हां यह वास्तविकता है की समाज में रहने वाले हर व्यक्ति की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का उत्तरदायित्व देश में एक विशेष निर्णय के तहत लाये गए शासन अधिकारीयों और क़ानूनी अधिकारीयों का है और उन्हें इस सम्बन्ध में एक विशेष कार्य सौंपा गया है| और कुछ सीमा तक इस कार्य को क़ानूनी स्तर पर किया भी जाता है| आज नारी सुरक्षा को चुनौती देने वाले हर क्षेत्र में बहुत ही कठोर कानून का प्रावधान किया गया है | जहाँ "भारतीय दंड संहिता" अपनी एक विशेष भूमिका अदा करता है | यह दंड संहिता किसी भी अपराध के साशय किये जाने पर कठोर दंड सुनिश्चित करता है | लकिन क्या यह अपने आप में पर्याप्त है ? क्या इसके प्रयासों को समस्या के समाधान के सम्बन्ध में पूर्णतया पर प्राधिकृत कर दिया गया है या फिर इसके आलावा भी कुछ किये जाने की आवश्यकता है ?
समाज में नारी सुरक्षा की वास्तविक जिम्मेदारी कानून के साथ किसी और की भी हो सकती है| क्या इस जटिल समस्या के समाधान में कोई और भी अपनी जिम्मेदारी समझ सकता है| और इसमें अपना सकारात्मक योगदान दे सकता है इस सम्बन्ध में विचार करने के आवस्यकता आज के गंभीर समय तो अवश्य समझी जानी चाहिए
क्या इस समस्या के सम्बन्ध में कुछ इस प्रकार भी सोचा जा सकता है की कही न कही इस समाज का, समाज में रहने वाले परिवारों का और इन परिवारों में रहने वाले सदस्योँ का भी कोई कर्त्तव्य बनता है की वह अपने इस समाज की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी को एक बहुत ही महत्वपूर्ण सुरक्षा कैसे दे सकें| वह यह सुनिश्चित कर सके की किसी कानून या क़ानूनी अधिकारी की अपेक्षा नारी या महिला के आसपास जो हमेशा रहता है वह है उसका घर-परिवार , उसका समाज जिसके स्वीकार्य और अस्वीकार्य रूप में उसके अस्तित्व की मुख्य कारण वह स्वयं होती है तो क्या यह समाज इसके लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण लकिन बहुत ही सहजता से किया जा सकने वाला कार्य नहीं कर सकता क्या?
सुरक्षा या जीवन रक्षा का अधिकार सबका होता है , यह अधिकार सबको समान रूप से मिलना चाहिए और सम्भवत: एक सभ्य राष्ट्र के द्वारा इसे प्रतिपल इसे दिया भी जाना चाहिए | सिर्फ कानून का सहारा लेना या कानून के आगे एक प्रश्नवाचक चिन्ह लगा देना सुरक्षा की जिम्मेदारी को पूरा नहीं करता है | कानून का उपयोग बाद में किया जाएगा किसी भी कानून से पहले किसी का भी अच्छा या बुरा करने की सामर्थ्य उस विशेष तत्व की होती है जो उस मनुष्य के मस्तिक में होता है और इसका नकारात्मक व्यावहारिक रूप ही नारी सुरक्षा को बाधित करता है
कानून किसी को भी भौतिक स्तर पर सुरक्षा प्रदान कर सकता है लेकिन मानसिक स्तर पर ऐसा किया जाना बिलकुल संभव नहीं है| इस समाज और समाज में रहने वाले व्यक्तियों की मानसिक स्तिथि ही किसी भी नारी की सुरक्षा की जिम्मेदारी सुनिश्चित कर सकती है| इसलिए आवश्यकता है तो इस बात की समाज के द्वारा इसके मानसिक क्ष्रेत्र में नारी और उसके अधिकारों के सम्बन्ध में एक सकारात्मक सोच का स्थिरतापूर्ण मजबूत ताना-बाना तैयार किया जाना चाहिए |
और वास्त्विक रूप में आज के विकट समय में इस ला इलाज मान ली गयी मानसिक बीमार का हल इन्ही विचारों के फेर-बदल के माध्यम से ही किया जाना चाहिए क्यूंकि इसका इलाज पूरी तरह कानून के माध्यम से कभी भी नहीं किया जा सकता है |
इस जिम्मेदारी को एक बार इस समाज के द्वारा बोझ और व्यर्थ समझे बिना उठाया जाना जरूरी है और इन शब्दों का बार- बार दोहराया जाना चाहिए की नारी सुरक्षा की जिम्मेदारी जितनी कानून की है उतनी मेरी भी है?
नारी सुरक्षा किसकी जिम्मेदारी है?
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