"दहेज़" भारतीय समाज में किसी भी वैवाहिक संस्कार के लिए एक बहुत ही आवश्यक और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है | ऐसा हर उस व्यक्ति के द्वारा समझा जाता है जो अपने जीवन में कभी न कभी कारण या अकारणवस् इस स्तिथि से परिचित होता है| उसके लिए शादी या विवाह के बारे में सोचने का मतलब सिर्फ यह है की इस कार्य के लिए दहेज़ जैसे सबसे खास अतिथि को कैसे व्यस्थित किया जाए ताकि पुत्र पक्ष के व्यक्ति को अपने सम्मान में एक अलग ही प्रकार की अनुभूति हो सके | क्यूंकि इनके सम्मान का सीधा सम्बन्ध इसी दहेज़ से होता है यद्यपि यह समाज के नाम पर एक काला धब्बा है लेकिन इंसान का दुर्भाग्य देखिये यही काला धब्बा इनके सम्मान का प्रतीक होता है | और यही काला धब्बा जो की पुत्रपक्षकारो का सम्मान है, पुत्री के लिए भविस्य में सुख और चैन की प्राप्ति का प्रमाण है
चुकी इसकी उपस्तिथि ही विवाह की रौनक और ख़ुशी का मानक स्तर तय करती है | इसलिए परिवार या समाज में विवाह की एक हलकी सी सोच भी किसी के मस्तिष्क में आती है और वैवाहिक पक्षकार इसके सामान्य से बातचीत के लिए भी एक दूसरे के सामने उपस्तिथ होते हैं तो सबसे पहले एक ही अतिथि के विवाह में होने वाली उपस्तिथि को सुनिश्चित करते हैं और अपना अधिकतम समय इसके लिए ही व्यतीत करते हैं|
और यदि किसी कारणवश पुत्रीपक्ष के व्यक्ति द्वारा पुत्रपक्ष के व्यक्ति से इस सम्बन्ध में बात नहीं की जाती है और किसी कारणवश वह अपनी पुत्री और परिवार के सम्बन्ध में बातचीत को अधिक महत्व देता है तो यह एक नयी समस्या उत्त्पन्न होती है जोकि पुत्र के पक्षकारों के मन में एक अलग ही प्रकार का शक उत्पन्न करती है की कहीं सामने वाला व्यक्ति "लकीर का फ़क़ीर" तो नहीं है | क्यूंकि यह दहेज़ बुलावे के बिना शादी-ब्याह का व्यावहारिक रूप तो छोड़ ही दीजिये मस्तिक में भी इसकी दौड़ संभव नहीं है |
आज के आधुनिक परिस्थियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है आज का समाज काफी शिक्षित और संपन्न है और आज के समाज में दहेज़ को उतनी महत्ता नहीं दी जाती हैं क्युकी देश में दहेज़ लेना और देना दोनों ही एक अपराध है और अस्तित्व में लाये गए "हिन्दू कोड बिल" से इसे न्यून कर दिया गया है लेकिन समझने की जरूरत है की इसमें कुछ नया नहीं है और स्थिति कुछ और ही बन गयी है इसके लिए उस शराबखाने का पता जानना अच्छा रहेगा "जहाँ पुरानी बोतल में नयी शराब" दी जा रही है |
और अभिजात्य वर्ग के द्वारा इसे अलग ही रूप प्रदान कर दिया गया है जिसमे इसमें उपहार नामक शब्द के माध्यम से एक अलग ही रंग से भर दिया गया है| जहाँ इस रिश्तेदार को जोकिअब तक "काले कोट" में समाज में कुख्यात था अब नए और बिलकुल सफ़ेद बिना दागदार कोट में अपनी रिश्तेदारी निभा रहा है | चुकी कानून ने इसके काले कोट में छिपे दागो को धोने का काम शुरू कर दिया हैं तो इसने भी अपना एक new version दुनिया के सामने पेश कर दिया है जिसके बहुत ही सहजता से उपयोग करने की विधि भी इस समाज को मिल चुकी है |
यानि ये एक ऐसा मेहमान है जिसका अपना ही एक आतिथ्य सत्कार है |
दहेज जिसका अपना ही एक आतिथ्य सत्कार है |
चुकी इसकी उपस्तिथि ही विवाह की रौनक और ख़ुशी का मानक स्तर तय करती है | इसलिए परिवार या समाज में विवाह की एक हलकी सी सोच भी किसी के मस्तिष्क में आती है और वैवाहिक पक्षकार इसके सामान्य से बातचीत के लिए भी एक दूसरे के सामने उपस्तिथ होते हैं तो सबसे पहले एक ही अतिथि के विवाह में होने वाली उपस्तिथि को सुनिश्चित करते हैं और अपना अधिकतम समय इसके लिए ही व्यतीत करते हैं|
और यदि किसी कारणवश पुत्रीपक्ष के व्यक्ति द्वारा पुत्रपक्ष के व्यक्ति से इस सम्बन्ध में बात नहीं की जाती है और किसी कारणवश वह अपनी पुत्री और परिवार के सम्बन्ध में बातचीत को अधिक महत्व देता है तो यह एक नयी समस्या उत्त्पन्न होती है जोकि पुत्र के पक्षकारों के मन में एक अलग ही प्रकार का शक उत्पन्न करती है की कहीं सामने वाला व्यक्ति "लकीर का फ़क़ीर" तो नहीं है | क्यूंकि यह दहेज़ बुलावे के बिना शादी-ब्याह का व्यावहारिक रूप तो छोड़ ही दीजिये मस्तिक में भी इसकी दौड़ संभव नहीं है |
आज के आधुनिक परिस्थियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है आज का समाज काफी शिक्षित और संपन्न है और आज के समाज में दहेज़ को उतनी महत्ता नहीं दी जाती हैं क्युकी देश में दहेज़ लेना और देना दोनों ही एक अपराध है और अस्तित्व में लाये गए "हिन्दू कोड बिल" से इसे न्यून कर दिया गया है लेकिन समझने की जरूरत है की इसमें कुछ नया नहीं है और स्थिति कुछ और ही बन गयी है इसके लिए उस शराबखाने का पता जानना अच्छा रहेगा "जहाँ पुरानी बोतल में नयी शराब" दी जा रही है |
और अभिजात्य वर्ग के द्वारा इसे अलग ही रूप प्रदान कर दिया गया है जिसमे इसमें उपहार नामक शब्द के माध्यम से एक अलग ही रंग से भर दिया गया है| जहाँ इस रिश्तेदार को जोकिअब तक "काले कोट" में समाज में कुख्यात था अब नए और बिलकुल सफ़ेद बिना दागदार कोट में अपनी रिश्तेदारी निभा रहा है | चुकी कानून ने इसके काले कोट में छिपे दागो को धोने का काम शुरू कर दिया हैं तो इसने भी अपना एक new version दुनिया के सामने पेश कर दिया है जिसके बहुत ही सहजता से उपयोग करने की विधि भी इस समाज को मिल चुकी है |
यानि ये एक ऐसा मेहमान है जिसका अपना ही एक आतिथ्य सत्कार है |
दहेज जिसका अपना ही एक आतिथ्य सत्कार है |
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